आज देश में बिगुल है बजा
अब आओ भष्टाचार है मिटाना
जोश होश से सभी हैं कहते
लोकपाल जन -जन का लाना
अब त्रस्त हो चुके सभी भ्रष्ट से
फिर भी लगभग सभी भ्रष्ट से
अब अपने भीतर भी खंगोलकर
अपरिमित भ्रष्टाचार हटाना है
सात जनम को धन संग्रह से
अब नहीं चाहते बालक ऐसे
अब तो ये सोच बदलनी होगी
ये प्रथा नई अब करनी होगी
थोड़ी सह लोगे जो तुम पीड़ा
हट जाए दूर भ्रष्टाचार का कीड़ा
कहो न हम कुछ ऐसे देंगे लेंगे
नैतिक होकर ही गुज़र कर लेंगे
है कहाँ जेब लंगोट कफन में
जेब बसी पर सबके मन में
सब कुछ जग में छोड़ोगे तुम
कहाँ ये जेब भर जाओगे तुम
व्यापारी, शिक्षक या डाक्टर
ठेकेदार कर्मचारी भी मिलकर
सब मिल खाते दीमक जैसे
सदाचार बचाओगे तुम कैसे
नेता और अभिनेता ही क्यों
निज लाभ के खातिर हम सब
करते रहे इसकी पालन पोषी
मैं भी दोषी हूँ तुम भी हो दोषी
1 comment:
उदय जी आपका ये दोषी ब्लौग बहुत ही रोचक लगा. धन्यवाद
Post a Comment