Tuesday, August 9, 2011

मुल्क जल रहा है

बचा लो इसे ये मुल्क जल रहा है
देखो कहीं जाति से, कहीं धर्म से
सत्कर्म छोड़ दुष्कर्म से कैसा
ये रोज़, हर रोज़ जल रहा है
भ्रष्ट शासक भ्रष्ट लोगों की भीड़ में
बस भ्रष्ट ही आचार पल रहा है
कहीं भूख से कहीं शोषकों से
त्रस्त जन बस हाथ मल रहा है
हर तरफ हाहाकार है मचा यहाँ
आज है और न कोई कल रहा है
परिवार की और जेब की बस
जुगत में हर कोई विकल रहा है
भूल सब बस अपनी खातिर सही
बचा लो इसे ये मुल्क जल रहा है

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