Thursday, August 11, 2011

जुस्तज़ू


आज हवाओं में भीनी भीनी ख़ुशबू है
होने वाली पूरी शायद मेरी जुस्तजू है
आसमान भी आज मेरा गवाह बन रहा है
कितने खिलते हुए नीले रंग में दीख रहा है
बादलों के गुच्छों में बैठ कर नीचे सी आती
परियों की भी लगता बस यही आरजू है
मेरे आस पास बहती कैसी मंद पवन है
मौसम भी आज इधर ऐसा मनभावन है
न मालूम कौन है देता क्या आमंत्रण है
कुछ भी हो चलता रहे यही सिलसिला
अब बस यही मेरी आरज़ू जुस्तज़ू भी है

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