Tuesday, August 9, 2011

दीदार-ए- यार


ज़माना गुजरा कोई पैगाम मिले सही
ये दिल आज भी गुल-ए-गुलज़ार तो है
न उनने कभी या न हमने ही कहा हो
लफ़्ज़ों में बयाँ न हो सही इकरार तो है
दिन गुज़रे रातें भी गुजरी तसव्वुर में
मुलाक़ात न हों न सही इंतजार तो है
वो अपने शहर में हम अपनी डगर हैं
पास नहीं हम दूर सही पर प्यार तो है
नींद न हो न सही ख्वाब भी न सही
मेरी बंद आँखों में दीदार-ए- यार तो है

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