Wednesday, November 2, 2011

चार दिन

जिस्म का हर एक हिस्सा थक रहा था हर दिन
रह रह के याद आते रहे हमें वो हसरतों के दिन
लौट कर आयेंगे सोचा था कभी फ़ुर्सत के दिन
हद हुई इंतज़ार की आए न कभी वो चार दिन

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