Sunday, November 6, 2011

हवा


ऐ हवा तू भूले से भी मेरे पास मत आना
मुझको तो हवा के झोंकों से चोट लगती है
अगर कभी तेरे झोंकों से महकती ख़ुशबू
मानो कोई बेबसी सी मुझे कचोट लेती है
महके महके से भी तेरे हों अगर अंदाज़
कोई भूली हुई शाम की सोच सी लगती है
गर्म हो या सर्द हो कोई भी मौसम इनका
ज़िन्दगी से ये तो सब नमी खसोट लेती है
कैसी तन्हाई कितनी बेख़ुदी का आलम है
सारे फुर्सत के पल भी ये बस समेट लेती है

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