Sunday, November 6, 2011

सपनों में

अपने सपनों में देखा था जिनको सपनों में ही पाया है
खुली आँख से देखा जग कुछ और हक़ीक़त लाया है
फिर भी लेकिन आँखों में क्यों उनका ही सरमाया है
दोष सभी सपनों का था शायद उनने ही भरमाया है

2 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





आदरणीय उदय जी
सस्नेहाभिवादन !

आपके ब्लॉग पर लगी सारी रचनाएं देखी … अच्छी लगी ।
आप काव्य लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा की अच्छी सेवा कर रहे हैं ।


बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Udaya said...

राजेंद्र जी एवं अन्य मित्रो!
आपकी हौसला अफज़ाई का सादर धन्यवाद:)