दीप जलाने आए हो तुम
कितनी स्वर्णिम भाषाओं के
गीत सुनाने आए हो तुम
जन-गण की अभिलाषाओं की
अलख जलाने आए हो तुम
दिग्भ्रमित जनों के दिशा ज्ञान के
निर्देशक बन आए हो तुम
भयहीन विचरते भ्रष्टों को अब
चेतावनी बन आए हो तुम
कितनों की अंतिम इच्छाओं के
बन के पूरक आए हो तुम
चीर सभी पग-बाधाओं को
नव-दीप जलाने आए हो तुम
नई रौशनी के द्योतक बन कर
उम्मीद जगाने आए हो तुम
यश भी हो मार्ग प्रशस्त रहे
जो कार्य सफल करने आए हो तुम
खुद भी हम सब से साथी से
आम को ख़ास बनाने आए हो तुम
No comments:
Post a Comment