ख़ुदबख़ुद कुछ एहसास गुनगुनाने लगते हैं
वक़्त की रफ़्तार जाने क्यों ठहरने लगती हैं
कोई भूली बिसरी सी ख़ुशी चहचहाने लगती हैं
कोई अंज़ाने से ख्याल मन गुदगुदाने लगते हैं
तन-मन में कोई संगीत का नशा छाने लगता है
दरबदर गुज़रती हवाओं में मदहोशी छा जाती है
सूखे मौसम में भीगी-भीगी झलक छाने लगती है
तुम हो तो गुलशन में खिंज़ा नहीं दिखाई देती हैं
पतझड़ में भी बहारों की सी महक आने लगती हैं
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