Friday, December 6, 2013

सिमट रही ज़िन्दगी

इतने क़रीब से देख जीने पर भी
कभी समझ में नहीं आती ज़िन्दगी
मानो कल की ही सी बातें हैं सब
लेकिन एक अरसा पुरानी ज़िन्दगी
जाने कब के गुज़रे पल आज भी
बड़े ताज़ा से लगने लगते हैं यहाँ
जगह, लोग, उनकी अपनी बातें
वक़्त के साथ कड़वी भी मीठी सी
एक ठहाके के साथ याद ये ज़िन्दगी
हर पल बिना कोई एहसास कराये
गुज़र जाता है यहाँ बड़ी ज़ल्दी ही
ज़िन्दगी का अपना है ये सिलसिला
रफ्ता रफ्ता सिमट रही है ज़िन्दगी

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