Tuesday, December 14, 2010

लम्हे

लम्हे
भुला देना चाहता हूँ मैं
उन क़फासत के लम्हों को
जो अब तक भी हावी हैं
जेहन में भी काबिज़ मेरे
फिर से नई रुत आयेगी
एक नए मेहताब के साथ
गुल ओ गुलज़ार रोशन होंगे
एक नई सुबह के साथ
मैं भी तब कोशिश करूँगा
एक और नई शुरुआत की
घड़ियाँ ख़त्म हो जाएँगी
इस लम्बे एक इंतजार की

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