अलबत्ता
तब मैं चाहे यदा कदा सही
कर दिया करती थी तुमसे
अपनी अपेक्षाओं का बखान
अब मैं दोहराना नहीं चाहती
तब के मेरे उस व्यव्हार को
तुम समझ नहीं पाओगे इसे
मैं तुम्हें दोष भी नहीं देती
पर समझाना भी नहीं चाहती
मैं जानती हूँ यह भी अलबत्ता
तुम कभी समझ नहीं पाओगे
फिर भी दोषारोपण नहीं करती
No comments:
Post a Comment