Thursday, December 16, 2010

वाक़यात

अश्क बन के आज थे बहने लगे
इश्क में जो संजोये सारे ज़ज्बात
आंसुओं से ज़ख्म धुलने थे लगे
मेरे दिल के अब वो दिन ओ रात
संभलने की मेरी कोशिशों पर
वक़्त चलता ही रहा था साथ साथ
वक़्त ने धुंधले किये थे सब मेरे
सारे गम और ज़ख्म मेरे एक साथ
लम्हा लम्हा पास आती ही गई
फिर ख़ुशी की अब नई थी वारदात
फिर से थे अब याद आने भी लगे
ख्वाब से वो मेरे सारे वाक़यात

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