Thursday, December 9, 2010

व्याप्त

व्याप्त
भूल जाना चाहता था मैं
पुरानी जिन आवाजों को
वो अब भी बुलाती हैं मुझे
पंचम सुर में पुकारतीं हैं
मानो पूछती हुई मुझसे
कहाँ तक कोशिश करोगे;
कितनी दूर भागोगे?
हम तो अचल हैं हमेशा
व्याप्त मन मस्तिष्क में तेरे
जितना भुलाना चाहोगे
हमें ही तो याद करोगे!

1 comment:

अनुपमा पाठक said...

bhoolne ki koshishen yaadon ko aur majboot karti hain..!
sahaj abhivyakti!