कभी कभी यहाँ
मुझे तन्हाइयाँ सताती हैं
मगर डर नहीं लगता
मुझे तनहाइयों से
ये तो साथी हैं
मेरे जीवन की
मेरे नितांत व्यक्तिगत
दुर्लभ क्षणों की
कभी कभी यहाँ
मुझे डर लगता है
लोगों के बीच
उनकी डरावनी
मानसिकता से
उनके आचार-व्यव्हार से
उनकी अक्षुण्ण पिपाशा से
लेकिन भान होता है
मुझे भी रहना है
इन्हीं के बीच
कभी कभी यहाँ
मुझे डर लगता है
हो न जाऊं कहीं
मैं भी इन्हीं कि तरह
फिर अहसास होता है
जब तक मैं मेरा है मुझमें
मैं स्वयं से
बहाना कैसे कर सकता हूँ
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