Friday, November 29, 2013

इश्क़


जान जाती रही मग़र है जान बाक़ी अभी
सलामती को जान की बस दुआ कीजिये

चन्द क़िस्से मोहब्बत के क़िताबों में हैं
इनको हक़ीक़त समझ न कहा कीजिये

इश्क़ एहसास भर बस है हक़ीक़त नहीं
जान की बाज़ियाँ यूँ न लगाया कीजिये

इश्क़ रब है या ख़ुदा है जिनको देखा नहीं
इसको क़िस्सा समझ पढ़ लिया कीजिये



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