आरज़ू धूमिल होने लगी हैं
वक़्त के बदले रंगों के साथ
कोई अनजाना सा समां है
इन नए-नए चेहरों के साथ
पुराना याद नहीं किसी को
पर पुराने प्रसंग मरोड़ते हैं
अपने मतलब की ख़ातिर
ये किसी को नहीं बख्शते हैं
भीड़ की मानसिकता है बस
सब कुछ बदरंग हुआ जाता है
भाड़ में जाये ज़माना कह कर
हरेक सोचता मेरा क्या जाता है
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