Thursday, November 28, 2013

दिल या जेहन

दिल को दिल से शिकायत जो होने लगी
कोई ख़ूबसूरत शरारत भी होने लगी
देखना यही था ज़िन्दगी पर असर
आग दिल में लगी या जेहन में लगी

कितने गुंचे मोहब्बत में संजोये मगर
गुलों की किल्लत यहाँ क्यों होने लगी
इश्क़ हमने किया कोई नादानी नहीं
यकबयक ज़िंदगानी क्यों रोने लगी

अब मुक़द्दस मेरा इश्क़ ये हो गया
अब रूहानी कहानी रूमानी लगी
ज़िन्दगी जब जिये ज़िन्दगी की तरह
ज़िन्दगानी यूँ हर पल सुहानी लगी

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