Saturday, November 30, 2013

ये भी रूप

सुना था बड़ी ठंड है यहाँ
लेकिन कम्बल के अंदर
तुम और हम पहली बार
बाहर लाज के परदे थे
यहाँ हम और कम्बल
यहाँ ठन्डे हुए हाथ तुम्हारे
अपनी हथेलियों में रख
गर्मी का एहसास हुआ
अब मेरे ये ठन्डे पाँव
तुहारे पैरों के बीच रख
तुमने गर्म करते करते
मेरी सुध-बुध भुला दी
आलिंगन और नज़दीक़ी
महसूस करते पहली बार
सिहरन तो ज़रूर हुई
लेकिन ठण्ड का नहीं एहसास
हमें महसूस हो गया
ये भी रूप और मिठास
इक़रार और प्यार का
दोनों साथ-साथ!

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