Wednesday, October 5, 2011

जय हो!


बड़ा विचित्र है ये जीवन क्रम
और निराले यहाँ के लोग भी
कितने विचित्र इनके रंग प्रसंग
कई तरह के इनके प्रारब्ध भी
प्रकृति के परिवेश में है बसी
निरंतरता व्यस्त पलों में भी
जलचर, नभचर और उभयचर
कृमि, पादप और वनस्पति भी
एक से दीखते हैं सबके क्रम
उनके समान जीवन संघर्ष भी
कभी निराशा में आशा की तलाश
अनायास प्रसन्नता के पल भी
इन सभी विसंगतियों के साथ
जय हो! जीवन की फिर भी

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