Saturday, October 8, 2011

चंचल


खोई खोई आँखों में हैं; मीठे मीठे सपने
प्यारे प्यारे लगते हैं; हर पल अपने
कैसी अनोखी है ये; क्या रुत छाई
बादलों के देश भी; लगते हैं अपने
कभी बल खाके; ज़ुल्फ़ उड़ी जाती
कभी लहरा के ये; उड़ता है आँचल
कभी रुक जाते हैं; ये सारे पल पल
साँस हुई मध्यम; दिल हुआ पागल
दिन हुए अपने; ख्वाब भी हैं अपने
जाने कौन कौन देश; मन चला जाए
कैसे कैसे सपने ये, मन बुने जाए
उनके ख्यालों से ये, मन मुस्कुराए
जैसे कोई पास से; मुझे छुए जाए
कोई एहसास देता; सारे कुछ अपने
मुझे मदहोश करते; चंचल ये सपने

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