Friday, October 28, 2011

नज़र से नज़र

हाँ उसकी नज़रें भी अक्सर
चुरा लेती हैं अपनी ही नज़र
जब कोई अंदाज़ ओ बयां हो
कोई मीठा सा एक सपना हो
जब आँखें शर्माती हैं नज़र से
कोई गुदगुदा सा एहसास हो
एक हसीं लम्हे की तलाश में
जब कोई ख़ुद खो सा जाता हो
या कोई ऐसी उन्मुक्त सी हँसी
कोई शरारत याद दिलाती हो
किसी गहरे दोस्त से कही कोई
अचानक ख़ास याद आ जाती हो
वो ख़ुद भी शरमाकर अक्सर
चुराते हैं अपनी नज़र से नज़र

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