गा रही थी गीत कोई
आज कोयल अटपटा सा
बोल शायद आज उसके
थे नहीं कुछ दिल से निकले
थी सुरों में कुछ मायूसी सी
कंठ भी कुछ था बिह्वल सा
स्वप्नवत लगती थी धरती
आज रस सब लापता था
फिर भी कोयल गा रही थी
अपना ज़िम्मा निभा रही थी
कौन जाने इस गीत के सुर
कुछ तो छोडें कहीं सीख सी
मार्ग के पथिक भी शायद
गीत पाएँ कर्णप्रिय न सही
सुन के सम्हलें अटपटा सा
No comments:
Post a Comment