Tuesday, October 25, 2011

अटपटा सा

गा रही थी गीत कोई
आज कोयल अटपटा सा
बोल शायद आज उसके
थे नहीं कुछ दिल से निकले
थी सुरों में कुछ मायूसी सी
कंठ भी कुछ था बिह्वल सा
स्वप्नवत लगती थी धरती
आज रस सब लापता था
फिर भी कोयल गा रही थी
अपना ज़िम्मा निभा रही थी
कौन जाने इस गीत के सुर
कुछ तो छोडें कहीं सीख सी
मार्ग के पथिक भी शायद
गीत पाएँ कर्णप्रिय न सही
सुन के सम्हलें अटपटा सा

No comments: