Wednesday, October 12, 2011

ज़र्ज़र

तिनका तिनका चुन चुन कर
बनाया था आशियाना हमने
हवाओं के झोंके; तपती धूप
बारिश के पानी में भीगे पर
कोई परवाह नहीं की हमने
न मालूम किस किस शत्रु से
बचा कर रखा तुमको हमने
शुरू से तुम्हारे छुटपन तक
दाना तक डाल मुख में तुम्हारे
मैंने तुम्हें जीवन के रंगों से
करवाया था सब परिचित
और तुम! उड़ चले दूर कहीं
पंख निक़लते ही तुम्हारे
मैंने भी इस ज़र्ज़र घोंसले को
त्याग ही दिया था लेकिन
फिर वही याद यहाँ ले आई
सुखी रहो! तुम्हारे नये देश!

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