Monday, October 24, 2011

मतवाली


घर घर होड़ लगी है कैसी
सजावटें और साज निराली
चकाचौंध रौशनी पटाखे
कैसी चमक रही दीवाली
पर आधी से ज्यादा आबादी
आधे भूखे पेट है सो ली
इन्हें न मिलती कोई होली
इनकी है न कोई दीवाली
पर दुनियां अपनी ही धुन में
गाती फिरती है मतवाली

2 comments:

अनुपमा पाठक said...

कटु सत्य है यह!

anita dogra said...

kavi woh dekh leta hai jo hazaro soye hue neta nahi dekh paate hein.