Tuesday, October 25, 2011

मेरी बात


सुन रहे थे तुम मेरी बात
अपने बंधे हाथों के साथ
शायद अनसुनी कर रहे थे
तुम जानकर ही मेरी बात
किन्तु मेरा मन साफ़ हुआ
अवसर रहते कह दी बात
अनजाने में ही हो सही पर
तुम्हारे समक्ष थी मेरी बात
शायद कभी समझ सको तुम
भविष्य में ही सही मेरी बात
फिर शायद मैं न कह पाऊं
तुमसे या मुझसे मेरी बात

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