Saturday, September 7, 2013

सुर्खरू


तमन्ना मुख़्तसर है
मन में तसव्वुर है
जाने किस बात का
ये छाया सुरूर है

आँखें खोई सी हैं
ख़याल बहके से हैं
हवाओं में खुशबू है
कुछ तो होना ज़रूर है

वक़्त थम गया है
समां बदल रहा है
मन बेक़रार है
और ये दिल मगरूर है

चाहतों के सिलसिले से
फरियाद-ए-मोहब्बत है
इसी माहौल में अपना
मिलन अब सुर्खरू है

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