सुर्खरू
तमन्ना मुख़्तसर है
मन में तसव्वुर है
जाने किस बात का
ये छाया सुरूर है
आँखें खोई सी हैं
ख़याल बहके से हैं
हवाओं में खुशबू है
कुछ तो होना ज़रूर है
वक़्त थम गया है
समां बदल रहा है
मन बेक़रार है
और ये दिल मगरूर है
चाहतों के सिलसिले से
फरियाद-ए-मोहब्बत है
इसी माहौल में अपना
मिलन अब सुर्खरू है
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