Friday, September 20, 2013

चार दिन

वही बातें गम की हैं ख़ुशी की भी कभी कहा करो
रोज़ कहते हो वही बातें कुछ तो नया कहा करो

राज़ रखते दफ़न तुम अपने सीने में हमेशा बस
कभी कुछ राज़ की बातें खुलने भी दिया तो करो

किया न फ़र्क़ जो उसने तो फ़र्क़ यूँ तुम क्यों करो
सताया अगर ज़माने ने तो सताया तुम क्यों करो

वक़्त को कोई कोसे क्यों वक़्त में रह लिया करो
दुनियाँ चार दिन ही सही कुछ तो जी लिया करो

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