Friday, September 20, 2013

दुश्वारियां

यहाँ की सारी बस्तियां उजड़ गईं
आसमान छूती इमारतें बन गईं

और ज़्यादा ऊँचा उठने की ख़ातिर
महत्वाकांक्षायें भी बढ़ती ही गईं

वक़्त के साथ चलते वक़्त न बचा
और वक़्त से ही दूरियाँ बढ़ती गईं

अब वक़्त ने वक़्त न दिया बाक़ी
वक़्त की ही देनदारियाँ बढती गईं

हमसफ़र अब हम से करते हैं गिले
गाहे बगाहे रह्गुजरियाँ बढती गईं

बड़ा आसान समझे थे ज़िन्दगी को
आसानियों से दुश्वारियां बढती गईं

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