Sunday, September 22, 2013

ख़्वाब

वज़ह ऐसी कुछ न थी फिर भी
कभी ख़्वाब देखा करता था मैं

बड़े खूबसूरत होते थे मेरे ख़्वाब
पूरे होते भी देखना चाहता था मैं

जानता था ख़्वाब नहीं होते पूरे
फिर भी एक सुकून पता था मैं

ख़्वाबों की दुनियाँ एक छलावा
इस बात का एहसास पाता हूँ मैं

ख़्वाब नक़ली सोच भी जगाते हैं
ख़्वाब नहीं देखना चाहता अब मैं

ख़्वाब फिर भी आ जाते हैं जब
तो ख्वाबों से नहीं कतराता हूँ मैं

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