सताती थीं हमेशा बस जब
जिंदा मेरी अनकही आवाजें
इसी ताबूत में हैं अब बंद
मेरे साथ मेरी ये आवाज़ें
कही भी ना सुनी भी ना
किसी से हमने ये बातें
न समझे तुम न समझे हम
बस आती रहीं ये आवाज़ें
न कह पाए न कर पाए कुछ
पर संजो रखीं ये आवाज़ें
तुम्हारे मन भी गूंजती होंगी
अक़्सर शायद मेरी ये आवाज़ें
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