तुमने अपनी तरह सोचा
प्रायः सब यही करते हैं
शायद कमोबेश मैं भी
फ़र्क़ तो पड़ता है लेकिन
सिर्फ अपनी सोचे कोई
ये तभी मान्य हो सकता है
अग़र कोई अकेला ही हो
लेकिन तब भी सवाल होगा
अकेला भी अकेला कहाँ है
अनगिनत लोग है शामिल
उसके ज़िंदा रहने के साथ
कल, आज और कल भी
मैं और नहीं समझाऊँगा
इससे ज़्यादा तुमको
शायद इसी उम्मीद में
तुम खुद एहसास कर लोगे
आज नहीं तो कल कभी
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