Monday, April 25, 2016

जीवाश्म सा

मैं नहीं रखता
शायद अपेक्षा
करता नहीं तुम से
दया याचना कोई
तुम्हारी दृष्टि में
मैं इतिहास से इतर
अपरिचित, अविदित
दृष्टिगोचर हुआ
एक दबा हुआ
एक हस्ताक्षर मात्र
कोई समय का
शायद मैं नहीं रखता
शायद अपेक्षा
करता नहीं तुम से
दया याचना कोई
तुम्हारी दृष्टि में
मैं इतिहास से इतर
अपरिचित, अविदित
दृष्टिगोचर हुआ
एक दबा हुआ
एक हस्ताक्षर मात्र
कोई समय का
शायद जीवाश्म सा
मैं तो स्वयं यहाँ
विस्मृत हूँ स्वयं से
काल की गर्त में
मुझे तुम से क्या
मुझ से क्या
किसी से भी क्या
मैं तो स्वयं यहाँ
विस्मृत हूँ स्वयं से
काल की गर्त में
मुझे तुम से क्या
मुझ से क्या
किसी से भी क्या

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