Thursday, April 14, 2016

एक और सिसकी

अब उमगें हैं यहाँ
शायद हर किसी की
सब दौड़ में शामिल
अनन्त सी यात्रा की
सब कुछ मेरा-अपना
चिंता नहीं किसी की
संवेदनायें मृतप्राय
लगभग सभी की
अपनों की ही हो
या और किसी की
सिसकियाँ भी कोई
नहीं सुनता किसी की
अनसुना करते हैं
एक और सिसकी
समझ कर सोच से
मेरी-तेरी और उसकी
क्या यही बनायेंगे
ये दुनिया सभी की?

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