Thursday, April 21, 2016

अनअपेक्षित

दूर कहीं नेपथ्य से
सुनसान सी कुछ
आकृतियां यहाँ
आवाज़ें ले आती हैं
स्वर मीठे से हैं
लेकिन बोल अज्ञात
फुसफुसाकर कभी
इन कानों में मेरे
कहने लगती हैं
कर्णप्रिय बातें
ढूंढ़ता हूँ ज्यों ही
ठिठक कर मैं उनको
विलीन हो जाती हैं
इसी परिवेश में वो
सोचता हूँ मैं
कुछ चीज़ें मिलती हैं
अनायास ही यहाँ
अपरिचित, अनअपेक्षित
और सिमट जाती है स्वयं
परिचय खोजने पर!

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