वो भी थे तब गुमसुम से बने
मैं भी कुछ अस्थिर भावों में था
फिर भी जाने ये विचित्र कैसा
हम दोनों में कुछ नाता सा था
मन अब भी बस थम जाता है
वो तब भी घुटता सा रहता था
रुकते चलते जीवन प्रसंगों में
मन हठ सा करता ही जाता था
वो अपनी बात अड़े ही रहते थे
मैं भी अपनी कहता जाता था
उनमें मुझमें थोड़ा सा था अंतर
मैं उनकी भी सब सुन लेता था
अब भी बस कोशिश करता हूँ
तब भी कोशिश करता जाता था
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