रात भर आपकी याद आती रही
और दिल से बगावत भी चलती रही
आपके बिन एक पल भी गुज़रता नहीं
पर ज़िन्दगी आपके बिन भी चलती रही
गुफ्तगू मन ही मन में तो होती रही
दिल की दिल से मोहब्बत भी होती रही
चाँद निकला तो था आसमाँ में कहीं
चांदनी थी मगर छुप छुप के रोती रही
मेरी मायूसियाँ मुझ पे हँसती रहीं
मेरी हालत पे फ़ब्ती भी कसती रहीं
बेवज़ह ज़िन्दगी यूँ तरसती रही
हर लिखी जो मुक़द्दर में होती रही
नींद भी मेरी आँखों की जाती रही
रात करवट पे करवट बदलती रही
बेबसी मुझसे फिर भी ये कहती रही
ज़िन्दगी में ख़ुशी की कमी भी नहीं
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