Tuesday, January 31, 2012

अन्जानी आवाज़ें

अन्जानी आवाज़ों का पीछा करते हुए
कोई यहाँ मंजिल तक नहीं पहुंचा है
कितना भी दूर रहना चाहो तुम इनसे
फिर भी आवाज़ें बस बुलाने लगती हैं
इन्हीं की तरह इनके अंदाज़ निराले हैं
कभी माध्यम तो कभी अट्टहास भी
कभी कोई मीठी धुन सी सुना जाती हैं
कितना भी छुड़ाना चाहो तुम पीछा
तो भी ये आहट सी सुनाने लगती हैं
कभी प्रश्न चिन्ह तो कभी उत्तर से देती
अपना हर अंदाज़ ये अलग ही रखतीं
कभी गैर की भाषा में सी कुछ कहती हैं
फिर ये बिलकुल अपनी ही लगती हैं

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