अन्जानी आवाज़ों का पीछा करते हुए
कोई यहाँ मंजिल तक नहीं पहुंचा है
कितना भी दूर रहना चाहो तुम इनसे
फिर भी आवाज़ें बस बुलाने लगती हैं
इन्हीं की तरह इनके अंदाज़ निराले हैं
कभी माध्यम तो कभी अट्टहास भी
कभी कोई मीठी धुन सी सुना जाती हैं
कितना भी छुड़ाना चाहो तुम पीछा
तो भी ये आहट सी सुनाने लगती हैं
कभी प्रश्न चिन्ह तो कभी उत्तर से देती
अपना हर अंदाज़ ये अलग ही रखतीं
कभी गैर की भाषा में सी कुछ कहती हैं
फिर ये बिलकुल अपनी ही लगती हैं
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