तुम्हारी संवेदना भी शायद
बस पाषाण सी हो गई हैं
एक कठोर ह्रदय की भाँति
कारण मैं नहीं जानता हूँ
तुम्हारे नूतन प्रतीक को
मैं नहीं समझना चाहता हूँ
तुम्हारा मंतव्य या कारण
मैं स्मरण दिलाना चाहता हूँ
मेरा सुझाव भी नहीं मानोगे
मैं अवश्य यह भी जानता हूँ
तुम्हीं आत्म-मंथन कर लो
इतना ही समझाना चाहता हूँ
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