Saturday, December 29, 2012

खरी खोटी

आज़ ज़माने को कोसने का मन करता हैं
समाज कसौटी में रखने को मन करता है
तुम्हें भी मुझे भी और यहाँ हरेक शख्स को
कहीं न कहीं शरीक़ बताने का मन करता है
बड़ी बेसब्री से सारी व्यवस्थाओं को आज
नोचकर चिल्लाकर जगाने का मन करता है
हम सब को ख़ुद मज़लूम की जगह देखकर
हमारे ज़मीर सदा को जगाने का मन करता है
आज बड़ी साफ़गोई और बेवाकी से ज़रूर
हरेक को खरी खोटी कहने को मन करता है

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