आज़ ज़माने को कोसने का मन करता हैं
समाज कसौटी में रखने को मन करता है
तुम्हें भी मुझे भी और यहाँ हरेक शख्स को
कहीं न कहीं शरीक़ बताने का मन करता है
बड़ी बेसब्री से सारी व्यवस्थाओं को आज
नोचकर चिल्लाकर जगाने का मन करता है
हम सब को ख़ुद मज़लूम की जगह देखकर
हमारे ज़मीर सदा को जगाने का मन करता है
आज बड़ी साफ़गोई और बेवाकी से ज़रूर
हरेक को खरी खोटी कहने को मन करता है
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