Tuesday, December 18, 2012

मौन मानवता

उसने कभी सोचा भी न था
कभी ये होगा उसके साथ
ये हंसती खेलती ज़िन्दगी
अभिशप्त हो जाएगी उसकी
बलात्कारियों की हवस से
कुछ संवेदनाओं के चलते
बस आलोचनाओं के बाद
सब स्वर मौन हो जाएंगे
व्यवस्था में सुधार के नाम
सब दोषी भयमुक्त घूमेंगे
मूक न्याय व्यवस्था में
मौन हुई मानवता के बीच
उसकी चीखें दब जाएँगी
उसकी व न्याय की दृष्टि में
सर्वस्व नष्ट चाहिए अवश्य
बिना अपवाद दोषियों का
शायद तभी संभव होगा कि
ये सब फिर दोहराया न जाए
उसकी जैसी अन्य के साथ

No comments: