आशा तो थी और निश्चय भी था
मगर बात थी कुछ बनती नहीं
कर्म का क्रम बन रुक जाता था
जिज्ञासा मग़र बुझती थी नहीं
काम सरल था शुरुआत पर भी
मुश्किल कुछ ऐसी तो रही नहीं
बस टाल मटोल का आलम था
कल आना था कोई आसान नहीं
कब से लम्बित था जाने काम
गम तो था रहता पर बना नहीं
आज के आज कर बन ही गया
कल कल कर जो था हुआ नहीं
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