Thursday, December 20, 2012

जानते हैं हम

क्या एक स्वप्न से लगते थे
जब तक कि अनज़ान थे तुम
बस स्वप्न ही बुनते रहते हो
ये हकीकत से अनज़ान थे हम
रेगिस्तान में मीठे पानी की
उम्मीद की एक झील थे तुम
समंदर की खारे पानी की एक
तदबीर हो नहीं जानते थे हम
कोशिशों में कमी रखते हो
नहीं कोई जान बूझ के तुम
फिर भी साझेदार तकदीर के
हकीकत ज़रूर जानते हैं हम

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