Sunday, January 13, 2013

सलीका

बहारों के नज़ारे देखने का हमें भी है बड़ा शौक़
अब कहाँ वो बहारें और रखें काहे का हम शौक़
ज़िन्दगी भी मुतवातिर बदलने लगी है अब तो
इसे जीने का सलीका ही बदल चुका है अब तो
हम हमारी बताने लगे इसे पर ये हमारी है कहाँ
यूँ भी हर शख्स चाहने लगा अब तो सारा जहाँ
कभी कभी मायूसियाँ भी अच्छी लगती थीं यहाँ
अब तो वही बची हैं पास अपने खुशियाँ हैं कहाँ
अब समंदर भी मोहताज़ हैं दरिया के रहम के
दरिया देखती हैं राह बादलों की आसमां तक के
ज़िन्दगी में खो सी गई है ज़िन्दगी ही अब यहाँ
ढूँढ सकते हो तो ढूँढो मिलेगी तो अब भी यहाँ

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