Tuesday, January 29, 2013

आज

आज पूछता हूँ मैं भी ये तुमसे
तुम में ऐसी क्या खुसूसियत है
कब से मैं उम्मीद लिए बैठा हूँ
जब से मज़लूम मैं बना बैठा हूँ
सच कहना क्यों बुरा लगता है
मिल्कियत नहीं ये ज़माने की
तुम्हारा हक़ क्या तुम जानो
बात कहता हूँ अपने हक़ की
सारी रोटियाँ जमा कर बैठे हो
बाँट लो या मेरी मुझको दे दो
तुम अपने हिस्से की न सही
मेरे हिस्से की तो मुझे अब दो

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