आज पूछता हूँ मैं भी ये तुमसे
तुम में ऐसी क्या खुसूसियत है
कब से मैं उम्मीद लिए बैठा हूँ
जब से मज़लूम मैं बना बैठा हूँ
सच कहना क्यों बुरा लगता है
मिल्कियत नहीं ये ज़माने की
तुम्हारा हक़ क्या तुम जानो
बात कहता हूँ अपने हक़ की
सारी रोटियाँ जमा कर बैठे हो
बाँट लो या मेरी मुझको दे दो
तुम अपने हिस्से की न सही
मेरे हिस्से की तो मुझे अब दो
No comments:
Post a Comment