एक ही दीदार से उसके फिर से एक बार
ज़िन्दगी ख़ुशी का अफ़साना बनने लगी
वक़्त लम्बा बीतने के बाद अब ही सही
दिलकशी की खुमारी फिर से बढ़ने लगी
हमसफ़र हम न सही हमनशीं खुद से हैं
दिल को धड़कन फिर शरारत करने लगी
उनको ख़बर तब भी न थी अब भी नहीं
दिल के कोने कोने में बेक़रारी बढ़ने लगी
No comments:
Post a Comment