कुछ कहने करने से पूर्व
किंकर्तव्यविमूढ़ हुए थे
उसके वक़्त और नसीब
देख आंसू बहने लगे थे
इसी को हम लोग क्या
प्रगति का रूप कहते थे
समाज का यह रूप देख
मन मलिन हो चला था
मेरे मन में बसे मैल को
धोना बहुत दूर की बात
आंसू भिगो तक न सके
मेरे मन के ये ज़ज्बात
फिर भी संकल्प तो था
कहेंगे हम अपने बात
अपनी और से हम भी
करते खुद को आश्वस्त
यथासंभव करेंगे प्रयास
चाहे जो भी होंगे हालात
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