मोहब्बत हो क्या मालूम
दिल की कुछ तो शरारत है
ये तो न कह सकेंगे शायद
कि ये जान तेरी अमानत है
फिर भी इशारा तो करेंगे
हर तरफ तेरी ही ख़ुशबू है
तूने तो सोचा भी नहीं होगा
बदहवासी में भी आलम है
कि बस तेरी ही जुस्तजू है
और तेरी ही सब गुफ्तगू है
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