Wednesday, January 9, 2013

खुद की नज़र

अक़्सर तस्वीरों के रंग यहाँ कुछ ज़ुदा से हैं
हक़ीक़त सिर्फ़ वो ही नहीं जो बताई जाती है
बेशक़ बेहद खूबसुरत हैं इस दुनियाँ के रंग
पर ऐसा नहीं हर ओर हरियाली ही बसती है
किसी और के चश्मे से ये रंगीन सी दुनियाँ
इतनी ख़ूब नहीं जो तुम्हें दिखलाई जाती है
कभी तो उठाके देखो तुम भी अपनी नज़र
कि खुद की नज़र से नई हद दिखाई देती है
इतने मुलम्मे चढ़ा हर चीज़ दिखाई जाती है
कभी कभी खुद की नज़र धोखा खा जाती है

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