Monday, January 14, 2013

किसी वक़्त

हम को यूँ न परेशां किया करो तुम हर वक़्त
अब तो हंसने भी लगा है हम पर ये वक़्त बेवक्त
एहसास दिलाते रहते हो हरदम तुम यूँ वक़्त बेवक्त
हक़ीक़त में भी तो मिला करो कभी किसी वक़्त
आ ही जाते हो मेरे ख्वाबों में तो अक्सर हर वक़्त
ख्वाबों से भी निकल आया करो कभी किसी वक़्त
ज़र्रे ज़र्रे में तुम दिखाई देने लगते हो किसी वक़्त
रूबरू भी तो दिखाई दे जाया करो कभी किसी वक़्त
दोपहर की धूप सी तुम न दिखाई दो कभी तो न सही
शबनम की बूंद सी सही आ जाया करो किसी वक़्त

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